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मोदी जी !! आपकी सरकार में आम आदमी से देश के नाम पर बलिदान मांगते रहने की इन्तहा हो रही है |

भटकन का आदर्श
भटकन का आदर्श
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आपके हालिया फैसले ने हंगामा मचा दिया है | देश की सियासत में बवेला ला दिया है | हर तरफ लोग हजार के नोट लेकर भाग रहे हैं | इलाके के भाजपाई भी सब चुप्पी साधे ताक रहे हैं | देश में हर तरफ परेशान चेहरा लिए लम्बी कतारे हैं और आप इसे देश के कल्याण का मास्टर स्ट्रोक बता रहे हैं | आपके नोटबंदी के फैसले के बाद पहली बार मेरा ‘मन की बात’ कहने का मन किया है | इसलिए आपको यह खुला ख़त लिख दिया है |
मोदी जी !! मैंने आपकी तरह चाय तो नही बेची है पर लोकतंत्र का एक जागरूक नागरिक जरूर हूँ इसलिए आम लोगों की तकलीफों से वास्ता रखता हूँ | बहुत इच्छा होने के बावजूद भी मैंने आपसे लोकसभा चुनाव का हिसाब नही माँगा था क्युकी वो आप क्या कोई भी देने से रहा | आपकी सरकार द्वारा लाये गये किसान विरोधी भूमि अधिग्रहण सम्बन्धी अध्यादेश के विरोध में निकले जा रहे जुलूसों का हिस्सा भी नही बना था | मैंने आपसे सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पड़ी पर भी आपसे आज तक टिप्पड़ी नही मांगी जिसमे कोर्ट ने आपकी तुलना रोम के निर्दयी ‘नीरो’ से की थी | हमने तब भी कुछ नही कहा जब आपके करीबी अमित शाह जी ने 15 लाख वाले वादे को हंस कर सरेआम जूमला बता दिया पर आज पहली बार कुछ तीखे सवाल करना चाहता हूँ | मुझे बताइये कि कालेधन पर अगर सरकार इतना ही सख्त थी तो पनामा दस्तावेज लीक मामले में अदालत की निगरानी में सीबीआई की जांच किए जाने संबंधी जनहित याचिका को खारिज करने का आग्रह सरकार ने क्यों किया था ?। अक्टूबर 2014 में राम जेठमलानी जी को क्यों लिखना पड़ा कि काले धन के मामले में सरकार की नीयत साफ़ नही है | अगर सरकार काले धन पर खुद सख्त थी तो सुप्रीम कोर्ट को क्यों सख्ती से क्यू कहना पड़ा कि “हम काला धन लेन वाले मसले को सरकार पर नही छोड़ सकते | ऐसे तो हमारे समय में यह कभी नही आयेगा | सरकार की जांच कभी पूरी ही नही होगी |” मैं जानना चाहता हूँ कि अर्थशास्त्र की ऎसी कौन सी किताब है जो यह बताती हो कि विमुद्रीकरण की नारेबाजी के नाम पर पूरे देश को कातारों में लगने के लिए मजबूर कर दिया जाये | बुद्धिजीवी बताते हैं कि कालेधन का सिर्फ दस फीसदी हिस्सा करेंसी के रूप में रहता है | उस दस फीसदी हिस्से को कर के दायरे में लाने के नाम पर पूरे देश को कतारों में खड़ा कर देना किस तरह की बुद्धिमानी है |(सुनने को मिला है कि इन दस फीसदी लोगों ने अपना बंदोबस्त कर लिया है | ) सरकारे आम लोगों की सहूलियत बढाने के लिए होती है या परेशनियों में इजाफा करने के लिए ?
कतार में खड़े लोगों का दर्द क्या होता है ! ,आप जानते हैं | ज़रा पूँछिये वित्त मंत्री जी से कि हमारे देश में बैंक नेटवर्क का विस्तार कितना है | रायपुर का एक किसान पिछले दो दिनों से अपने बेटे को पैसा भेजने के लिए चक्कर लगा रहा था | पैसा जमा नही हुआ तो किसान ने हारकर आत्महत्या कर ली | गोरखपुर में बैंक के सामने सदमे में एक महिला की मौत हो गयी | आपके गृहराज्य गुजरात के सूरत में छुट्टे पैसे न होने के चलते राशन न मिलने पर एक महिला ने ख़ुदकुशी कर ली | ऎसी तमाम खबरे देश के हर कोने से अखबारों में आ रही है | दैनिक जागरण की खबर के मुताबिक़ नोट बंदी के फैसले के सात दिन के भीतर अब तक चालीस लोगों की मौत हो चुकी है | किसानो के पास फसलों के लिए पैसे नही है | लोगों को सब्जियां लेने में किल्लत हो रही है | बेचने वाले और खरीदने वाले दोनों परेशान है | आप कह रहे हैं कि आपके इस फैसले से अमीरों की नींद हराम हो गयी है | क्या वाकई ऐसा हुआ है ? अपने किसी भक्त से ही पूँछिये कि कतार में परेशान हो रहे चेहरों को देखकर आपको कौन कालाधन वाला दीखता हैं | जिनके पास कालाधन है उनके लिए पनामा जैसे तमाम देशों के दरवाजे खुले हैं | वह कागज़ की तमाम फर्जी कंपनिया बनाना जानते हैं | इस फैसले पर हर चौराहे पर सन्नाटा है | मंडिया सूनी पड़ी है | लोग पैसा लेकर पैसे के लिए भटक रहे हैं | मरीज दवाइयों के अभाव में मर रहे हैं | घरों में शादियों में समस्या आ रही है | हम रेल की खिडकियों पर ,पेंशन की आशा में, और लगभग हर सरकारी कार्यालय में कतार में लगते – लगते थक चुके लोग हैं | क्या वो कतारे काफी नही थी जो देश के कल्याण के नाम पर आप फिर से कतारें लेकर आ गये हैं | अगर आपके फैसले यूं ही आम आदमी की नींद हराम करते रहे तो भारत के इतिहास में आपको एक गरीब विरोधी प्रधानमंत्री के रूप में याद किया जायेगा |
आपके फैसलों को जबरन जायज ठहराने के लिए भक्तों की भीड़ ने अजीब से तर्क गढ़ लिए हैं | व्हाट्स एप पर आजकल हाँथ में दफ्ती लिए एक लड़की का चित्र घूम रहा है जिस पर लिखा है कि ‘आपको नोट बदलने में दिक्कत हो रही है, सोचो! मोदी को देश बदलने में कितनी दिक्कत हो रही होगी |’ क्या इस तरह की चोचालेबाजियों से कालेधन को दूर किया जा सकेगा | ? इस देश को नारों से चलाने की कोशिश नयी नही है | आपने ही सफाई अभियान का नारा दिया था |उस अभियान का आपके लोगों ने ही क्या हश्र किया ,आप जानते हैं | लोग कूढा डलवाने के बाद उसे उठाते हुए फोटो खिंचाते रहे | हमे दिक्कत ‘नारेबाजी’ से नही है बल्कि समस्या ‘सिर्फ नारेबाजी’ से है | क्या इन नारों से कालेधन के उस नेक्सस को तोड़ा जा सका है जो सरकारी मुलाजिमो और बड़े पूंजीपतियों ने साथ मिलकर बनाया है |

आपकी सरकार में आम आदमी से देश के नाम पर बलिदान मांगते रहने की इन्तहा हो रही है | आपको बहुमत देने वालों को अगर अपने फैसले पर पछतावा हो रहा है तो समझिये कि आपकी सरकार के दिन अब जाने वाले हैं | कालेधन को अर्थव्यवस्था के दायरे में लाने के नाम पर आपके ये ऊटपटांग फैसले आपकी सरकार की कालिमा बढ़ा रहे हैं | आपको भक्तों ने संत की तरह देखा है | वे आपको महात्मा बुद्ध और विवेकानंद की कतारों में रखते हैं | कृपया उनके मन में बनी या लोगों के दिमाग में मिडिया द्वारा बड़ी मुश्किल से गढ़ी गयी अपनी मूर्ती को मत तोडिये | संतो का काम कल्याण करना होता है | आपने देश के कल्याण के नाम पर आम लोगों को परेशानी में डाल दिया है || मोदी जी !!अगर इन नारेछाप बदलावों की हर कीमत देश की आम आदमी को ही चुकानी हो तो देश को ऐसे बदलाव की कोई जरूरत नही है |

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