Menu
blogid : 23693 postid : 1212449

आज कश्मीर में भाजपा – गठबंधन की सरकार है इसलिए कांग्रेस का आक्रामक होना तो बनता है |

भटकन का आदर्श
भटकन का आदर्श
  • 26 Posts
  • 13 Comments

आज के दैनिक जागरण के सम्पादकीय प्रष्ठ पर कैप्टन अमरिंदर सिंह का एक लेख छपा है | कश्मीर के जटिल मसले पर सरल तरीके से लिखे गये इस लेख को पढ़कर पाठक आसानी से अंदाजा लगा सकता है की यह लेख कश्मीर मसले की गहरी जानकारी रखने वाले जानकारों की बजाय किसी ‘सत्ता के नजदीक नेता’ या ‘सैनिक दिमाग आदमी’ ने लिखा है | लेख का शीर्षक ‘सेना संग खड़े होने की जरूरत ‘ आपको बिना पढ़े एक ऐसे नतीजे पर पहुँचने की अपील करता है जिस पर पहुँच कर आपका चेहरा एक आँख छिपाने वाली इमोजी जैसा हो जाता है | इस लेख का विस्त्रत पोस्टमार्टम मैंने इस ब्लॉग के अगले पैरा में किया है लेकिन नतीजन यह लेख कश्मीर में अशांति से जूझ रही सेना को सरकार से बेशर्त किसी भी कार्रवाई की छूट देने की बेशर्म मांग करता है |
लेख का शुरूआती हिस्सा इतिहास की तमाम तथ्यों पर चादर डालकर आपको बताता है की ‘समझ लेना चाहिए की कश्मीर भारत का हिस्सा है ,क्युकी उनके पैदा होने के कई साल पहले महाराजा हरी सिंह ने 18 अगस्त 1947 को समझौता किया था ,जिसके बाद कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया था |’ यह जानकारी तथ्यात्मक रूप से सही हो सकती है लेकिन कोई पूछ सकता है कि क्या भारत की सरकारों ने अब तक 18 अगस्त 1947 के उसी समझौते का अनएडिट पालन किया है जिसका इस लेख ने पहले ही पैरा में जिक्र किया गया है | क्या आज कश्मीर से उठाये जा रहे सारे सवालों का जवाब एक मात्र यह तथ्य हो सकता है |? एक 8 साल का बच्चा जिसने इतिहास नही पढ़ा है, जो ठीक से इस्लाम भी नही जानता , वह पत्थर बाजों की भीड़ में शामिल कैसे हो गया |? बुरहान के जनाजे में लोगों का जो हुजूम उमड़ा था ,वह इस एक सरल सी लाइन को स्वीकार क्यू नही कर लेता ?? क्या हमसे कोई चूक हुयी है ?? क्या हमने गलतियों की है ? क्या हमे इन सवालों पर ध्यान नही देना चाहिए |
लेख में लिखा गया है की ‘आतंकवाद पर काबू पाने के लिए सेना को इतनी आजादी दी जानी चाहिया ताकि जो लोग इसे हवा देने की कोशिश करते हैं उन्हें यह समझ आ जाये कि अब बातचीत के बिना काम नही चलेगा |इस कारवाई के दौरान कुछ लोगों की जान भी जाएगी ,मगर क्या किया जा सकता है |’ इन लाइन्स को पढ़कर कोई यह पूछ सकता है की क्या कभी अलगाववादी चुनाव को तैयार नही थे ? भारत सरकार क्या कश्मीर से बातचीत करने को तैयार है ?उसको यह यकीन क्यू नही है की कश्मीरी अलगाववादियों को बातों बजाय सरकारी बातों पर ज्यादा यकीन करेंगे |? शायद इसीलिए क्युकी समाधान के रूप में सबसे दिलचस्प हल एक ‘कार्रवाई’ देखी जाती है ,जिस पर ‘मानवाधिकार’ जैसा कोई सवाल न हो | अमरिंदर सिंह की भाषा में ‘कुछ लोग जो मरेंगे ‘ उनको मार देने का पैमाना क्या होगा ? क्या वो निर्दोष होंगे ? क्युकी अभी भी कश्मीर में अफास्पा को अराजक तत्वों के खिलाफ कारवाई के असीमित अधिकार तो प्राप्त ही हैं |
लेख में एक प्रसंग है की ‘ सैनिकों की भीड़ में शामिल कुछ युवकों ने हथियार छीनने की कोशिश की तो सेना द्वारा जवाबी कारवाई में चलाई गयी गोली से दो महिलाओं समेत तीन लोगों की मौत हो गयी | सेना ने इस घटनाक्रम पर दुःख जताते हुए घटना की जांच करवाने के आदेश जारी कर दिए |’इस प्रसंग के बाद लेख में कैप्टन के विचार है की ‘यह विचित्र कदम है क्या किसी ने इस बात पर विचार किया है कि यदि भीड़ गश्त कर रही टुकड़ी से हथियार छीनने में कामयाब हो जाती तो टुकड़ी का नेत्रत्व कर रहे सनिकों का क्या होता ‘ | इस संभावना पर गौर करते हुए यह सवाल किया जा सकता है की क्या गोली चलाने वाले को उस भीड़ में यह पता था की यही महिलाएं दोषी हैं ? चूंकि भारतीय न्याय हमेशा निर्दोष के पक्ष में खड़ा रहने की बात करता है तो यह देखना जरूरी नही हो जाता ,की परिस्थिति की तमाम विषमताओं के बावजूद किसी निर्दोष पर गोली न चलाई जाये | हैरानी की बात ये है की इसमें इस दुखद घटना पर जांच को ही ‘विचित्र’ बताया गया है | लगता है कांग्रेस के इस नेता पर कैप्टन हावी हो गया है|
क्या कांग्रेस की यह आधिकारिक लाइन है ? बिलकुल नही | क्युकी ठीक दो दिन पहले पी चिदंबरम के कश्मीर विषयक एक लेख का अनुवाद अमर उजाला में प्रकाशित हुआ है | यह लेख न सिर्फ कश्मीर की मौजूदा हालात की विवेचना करता है बल्कि प्रधानमंत्री के सामने बिन्दुवार कुछ सुझाव भी रखता है जिस पर अमल लाने पर घाटी में अमल – चैन लाया जा सकता है | यह लेख इस लेख से कतई जुदा सेना के अधिकारों को सीमित करने की मांग करता है |सामान्य हालत के संवाद पर जोर देता है |यही नही बल्कि कश्मीर के कुछ इलाकों से अफास्पा हटाए जाने का सुझाव भी इस लेख में दिया गया है | पी चिदंबरम के लेख का लिंक –
http://epaper.amarujala.com/kc/20160724/08.html?format=img
दिलचस्प है की जब भाजपा इस समय संकट के हालत में कांग्रेस की कश्मीर नीति को कट –पेस्ट जैसा कर रही है ,कांग्रेस के नेता ने भाजपा की विपक्ष लाइन वाला लेख लिख दिया है |

वेल नोन है की भारतीय जनता पार्टी कश्मीर के मसले पर सबसे ज्यादा मुखर रही है | उनके पद दिखेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी का घाटी के लिहाज में भारत में दोहरी कानून व्यवस्था पर सवाल करते /लड़ते हुए से निधन हो गया था | हालांकि अब भाजपा ने राष्ट्रहित में एक नवीन राजनीतिक प्रयोग पर अमल करते हुए मुखर्जी के विचार पर चादर डाल उस PDP से गठबंधन कर लिया जिसका आदर्श दो झंडे हैं और जो अफजल गुरु को अब भी शहीद बताती है | हमारे देश में आक्रामकता का सारा जिम्मा विपक्ष ने उठा रखा है | चूंकि आज कश्मीर में भाजपा – गठबंधन की सरकार है इसलिए कांग्रेस का आक्रामक होना तो बनता है | शायद इसी कड़ी में ऐसे लेख लिखे जा रहे हैं | हालांकि कश्मीर के प्रति कांग्रेस का रवैया आधिकारिक तौर पर तार्किक तरीके से उदार रहा है | कांग्रेस में अमरिंदर सिंह जैसे नेता भी है तो पी चिदंबरम जैसे नेता भी है जिनका जिक्र मैंने ऊपर ब्लॉग में किया है |सवाल ये है की ऐसे लेख क्यू लिखे जाते हैं | दरअसर पिछले तमाम सालों से कांग्रेस भाजपा की बिछाई पिच पर राजनीति कर रही है | अफजल गुरू को फांसी देने की जल्दबाजी शायद राजनीतिक तौर पर इसीलिए रही होगी की भाजपा से एक मुद्दा छीन लिया जाये | हो सकता है की तात्कालिक तौर पर इससे लाभ मिलता हो या कुछ अति उत्साही राष्ट्रवादी मिजाज के लोगों को तुष्टि मिलती हो ,पर इस तरह हम अपने जनतंत्र को गहरा नुकसान पहुंचा रहे हैं | हम जनतंत्र का आधार ‘जनता’ को भीड़ में बदल रहे हैं | एक ऐसी भीड़ जो कश्मीर के नाम पर गोलबंद होकर आपको बहुमत दे सकती है पर यही भीड़ अविवेकी होकर किसी की हत्या भी कर सकती है | कश्मीर पर जो बोला जाता है ,उसका लेना- देना अक्सर कश्मीर से ज्यादा भारत की घरेलू राजनीति से होता है |इसीलिए भारत के अखबारों में राष्ट्रवाद से प्रेरित लेख लिखे जाते हैं/ बयान दिए जाते हैं | जनतंत्र की मजबूती और भारत की लेजिटिमेसी सुदूर कोनो तक बरकरार रखने के लिए हमे ऐसे बयानों /लेखो से बचा जाना चाहिए |

आशुतोष तिवारी
भारतीय जन संचार संस्थान

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh