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कांग्रेस पार्टी ने बहुप्रतीक्षित बड़ा फैसला लेते हुए राज बब्बर को उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बना दिया है |राज बब्बर के चेहरे पर दांव लगाने को राजनीतिक विमर्श की दुनिया में तमाम तरह से देखा जा रहा है | राजबब्बर की कुछ ख़ास बातें उन्हें आम उम्मीदवारों से अलग बनाती हैं | राजबब्बर को समाजवादियों के साथ काम करने का अनुभव रहा है | वह स्वयं समाजवादी वीपी सिंह के शिष्य रहे हैं | इसके साथ ही साथ वह स्वयं समाजवादियों के खिलाफ उत्तर प्रदेश में आन्दोलन चला चुके हैं |समाजवादी पार्टी से उन्हें बाहर का रास्ता भी इसीलिये दिखाया गया था क्युकी उन्होंने अमर सिंह पर दलाल संस्क्रती को बढावा देने का आरोप लगाया था |कुल मिलाकर वह अक साफ़ सुथरी छवि के नेता रहे है |आगरा से उन्हें दो बार लोकसभा चुनाव जीतने का अनुभव है तो २००९ में फिरोजाबाद से यादव परिवार की बहू डिम्पल यादव के सामने खड़े होकर उप चुनाव में उन्हें हरा भी चुके हैं |सपा के लिए वः इसीलिए बड़ा खतरा हो सकते हैं |राहुल गांधी के भरोसेमंद हैं और प्रियंका गांधी का समर्थन भी उन्हें प्राप्त है |यह सभी बाते उनके पक्ष में जाती हैं |
प्रदेश कांग्रेस कमिटी में चार वरिष्ठ उपाध्यक्ष भी बनाये गये हैं |इनका चयन जातिगत संतुलनों को देखकर किया गया लगता है |राजाराम पाल जहां अवध इलाके के प्रसिद्द दलित नेता है वही इमरान मसूद पश्चिमी यूपी में एक मोदी विरोशो मुसलमान चेहरे के रूप में देखे जाते हैं |राज बब्बर स्वयं भी पिछड़े वर्ग से आते हैं जिसे भाजपा के पिछड़े कार्ड का जवाब समझा जा सकता है |निर्मल खत्री को भी स्क्रीनिंग कमेटी का अध्यक्ष बनाकर एक सम्मानजनक स्पेस दे दिया गया है | प्रशांत किशोर को किसी ब्राम्हण चेहरे के हवाले करने की रणनीति जरूर धराशाही हो गयी है लेकिन अभी प्रचार समिति की कमान और मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार किसी ब्राम्हण चेहरे को सोंपा जा सकता है |
हालांकि कांग्रेस के नए अध्यक्ष के रूप में उनके पास चुनोतिया भी कम नही है |प्रदेश में लम्बे समय से कांग्रेस सता से दूर रही है | सूबे में कांग्रेस के संगठन कमजोर हो चुके हैं | युवाओं का ध्यान कांग्रेस की और खींचना एक बड़ी चुनोती है |कई लेखों में यह भी सवाल किया गया है की क्या राज बब्बर कोई करिश्माई चेहरा हैं ? तर्क यह दिया जा रहा है की लोकसभा चुनाव में न सिर्फ वह गाजियाबाद से कांग्रेस के उम्मीदवार ही थे बल्कि प्रचार समिति के अध्यक्ष का पद भी इन्ही के पास था |वह खुद तो चुनाव हार ही गये और प्रचार समिति के अध्यक्ष के रूप में भी कोई करिश्मा नही कर पाए |जिस तरह धीमे –धीमे फिल्मो से उनका जादू गायब हो रहा है क्या राजनीति में बच पायेगा ?? हालांकि इस फैसले से पार्टी को कितना फायदा होगा यह वक्त ही बतायेगा ,लेकिन इतना तय है की एक लोकप्रिय चहरे को उतारकर कांग्रेस ने प्रदेश की राजनीति को दिलचस्प बना दिया है |
आशुतोष तिवारी
भारतीय जन संचार संस्थान
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