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सुनो मां !!… मैं जीवन से भरे तमाम लोगों के बीच रहते –रहते खाली हो गया हूँ |

भटकन का आदर्श
भटकन का आदर्श
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सुनो मां !!…
जीवन की खूबसूरती से कोसों दूर मैं वेदना की रोशनी में यह खत लिख रहा हूँ |यह खत उस सच्चाई का समझाव ही है कि मुझे मेरे ही जीवन ने हाशिये पर ला पटका है ‘| मैं जीवन से भरे तमाम लोगों के बीच रहते –रहते खाली हो गया हूँ |शराब की पहली बोतल से लेकर चर्च की सात्विक शामों तक मैंने शांति को खोजा है |लेकिन शांति को सोता शायद सूख गया है |
किताबों से निकलकर हर रोज एक पागल पथिक मेरे सामने आ जाता है |सालों पहले उसने खुद में खोजने की बजाय सब में ख़ुशी को खोजकर पागल कर लिया था |मंटो की कहानियों के किरदार मुझे मेरे दोस्त लगते हैं |मेरे जहन में किताबों से भरा एक कमरा है | इस कमरे के भीतर कोई बाप अपनी उस बेटी को ज़िंदा देखकर खुश हो रहा है जिसका भरोसेमन्दों ने सामूहिक बलात्कार किया है | ‘कितने पाकिस्तान’ के शुरूआती पन्नो से बाबर अपना सर निकालकर इन्साफ के लिए चिल्ला रहा है |शरत चन्द्र के उपन्यासों की दुसरी औरत अपने प्रिय के लिए खुद का प्यार भी सदियों से कुर्बान कर रही है |महानता की चादर उसके आंसुओ से गीली हो रही है | निर्मल वर्मा का डैनी दो तिनका सुख की तलाश में सालों से भटक रहा है | इन किरदारों का हिसाब कौन करेगा |??? जुल्म की अनगिनत दास्तानों की बावजूद किताबें यह यकीन करने को कहती हैं की अब इन्साफ होने वाला है |मुझे इन झूठे यकीनों पर तरस आता है |

मां !!मैं दिन पर दिन एक बेकार आदमी होता जा रहा हूँ |किसी ऐसी इमारत की रचना में लगा आदमी जो कमजोर कामगारियों के चलते नियति में गिरना लिखाकर लाई है | सड़क के तीन चक़्कर मुझे थका देते हैं |इक्कीस बसन्तों में ही मैं बूढ़ा हो गया हूँ |जबरदस्त थका होने के बावजूद मन की बेचैनियाँ शांत नहीं होती |स्लीपिंग पिल्स के तीन -तीन डोज भी रात को किसी बुरे ख़्वाब में बदलने से नहीं रोक पाते | मुझे ठीक से हंसे हुए हफ्तों हो जाते हैं |मेरा जीवन समुद्र में पड़े हुए उन खाली तीन के कनस्तरों सा हो गया है जो खन्न -खन्न की आवाज करते अपने चारो और बिखरे पत्थरों से टकराया करते हैं | भला वेदना की शक्ति के सहारे कोई कब तक जियेगा |एक समय बाद वेदना की वैलेडिटी भी खत्म हो जाती है | शायद मैंने जीवन को गलत तरह से समझा है या जीना मेरे ‘समझ’ से कुछ ऊंची किस्म की चीज है | मैंने अब बच्चों के साथ खेलना बंद कर दिया है |मुझे मालूम है मां!! उन पर मेरा बुरा प्रभाव पड़ता है |वह अपने करीबियों से अजीब से सवाल करने लगते हैं |ऐसे सवाल जिनको कोई सुनना नहीं चाहता |जिनका जवाब कोई जानना नहीं चाहता|
मां !!दिन का एक मात्र खूबसूरत काम नाद्रा से मिलना होता है |नाद्रा एक विचित्र लड़की है मां |उसे मेरी ही तरह हर शाम किसी से प्यार हो जाता है |उसकी ज़िंदगी में उससे भी ज्यादा विचित्र कहानिया हैं |उन कहानियों से गुजरना ही उसे मेरे पास ले आया है| नाद्रा मेरे दवरा देखी गई युद्ध के खिलाफ प्रकृति की जवाबी रचना है |वह इतनी मासूम है की उसे देख नफरत भी मोहब्ब्त के सलीके सीख जाएगी |जब समझदारियां मुझ पर हावी होने लगती हैं ,मैं उसकी मासूमियत याद कर लेता हूँ |मासूमियत लौट आती है और नाद्रा चली जाती है |मैं अच्छा बेटा तो कभी था ही नहीं अच्छा प्रेमी बनने में भी नाकाम रहा हूँ |मां !!अच्छा आशिक होना वाकई एक चुनौती भरा काम है |
मां !! घर से बहुत दूर यहां अब मैं एक औपचारिक जीवन जी रहा हूँ | बदलाव की हर बात बदलाव लाने में नाकाम रही है | मेरा जीवन निर्मल वर्मा के उन उपन्यासों जैसा होता जा रहा है ,जिनमे कहानी या क्लाइमेक्स की बजाय जीवन के ऊब भरी यात्रा होती है | दिन की खालीपन मुझे थका देता है और अंतर्मन रात को एक नाइटमेयर में बदल देता है |आधी रात को उठकर मैं अपना लैपटॉप ऑन कर देता हूँ | गूगल पर सुसाइड करने के आसान तरीके खोजने लगता हू |फिर डर कर डाटा ऑफ कर देता हूँ |खुद को मारने का ख्याल अजीब लगता है |शायद मरने से भी ज्यादा अजीब होता है ‘अकेले मर जाना’ | वेदना को भी साथी चाहिए होता है मां !!! |मौत को भी साक्षी चाहिए होता है |
आशुतोष तिवारी

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