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यह कांग्रेस के लिए नए राजनीतिक प्रयोगों का सबसे शानदार वक्त है |

भटकन का आदर्श
भटकन का आदर्श
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पांच सूबों में हुए विधानसभा चुनावों के परिणाम आ चुके हैं | प्राइम टाइम की चौपालों में इन नतीजों का तमाम तरीकों से से पोस्टमार्टम किया जा चुका है |लेकिन विश्लेषण के किसी भी कार्यक्रम में एक कॉमन सवाल है कि ,’ अब कांग्रेस क्या करेगी’ ? | हिंदी के एक बड़े दैनिक ने अपनी सम्पादकीय कुछ इस तरह शुरू की है कि” पांच राज्यों के चुनाव नतीजों कि चाहे जैसी व्याख्या की जाये , कांग्रेस के हाँथ खाली ही नजर आ रहे हैं |’बढती भाजपा और सिमटती कांग्रेस’ कुछ इस टाइप की हेडलाइनें हिंदी बेल्ट की चुनाव परिणाम रिपोर्टिंग का सार रही हैं | कांग्रेस की हालत सचमुच इतनी खराब हो चुकी है या मीडिया वही दिखा रहा है जो दिखाना चाहता है |
यह सच है कि कांग्रेस के लिए यह मुश्किल वक्त है | चुनावी नतीजे भी कांग्रेस के अनुकूल नहीं है |पर मात्र चुनावी नतीजों को आधार बनाकर यह क्या यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि भाजपा ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ बनाने में सफल हो रही है या कांग्रेस का कोई भविष्य नहीं है | निर्णायक होने से पहले इन पांच राज्यों के चुनावी नतीजों पर गौर कीजिये | असम में कांग्रेस 15 साल के लम्बे वक्त से सत्ता में थी |सत्ता विरोधी रुझान का फायदा वहां भाजपा के गठजोड़ को मिलना तय ही था |(निश्चित रूप से कांग्रेस ने वहां कुछ रणनीतिक गलतियां की हैं | उसका जिक्र आगे किया गया है |)केरल में हर पांच साल बाद लोग पार्टी बदल देते हैं |वहां कि जनता का इस तरह कि राजनीतिक रुझान एलडीएफ को मौका देने कि वजह हो सकता है |पश्चिम बंगाल में कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई है |वाम के साथ गठजोड़ का उसको फायदा हुआ है |तमिलनाडू में उसके वोट प्रतिशत में मामूली सा फर्क आया है |पांडिचेरी में कांग्रेस ने द्रमुक के साथ मिलकर जीत दर्ज की है |दिल्ली नगर निगम में हुए हालिया चुनाव में उसने उम्मीद से परे चार सीटें जीती हैं |
राजनीतिशास्त्र में यह तथ्य है की चुनावी नतीजे किसी भी दल की राजनीतिक भविष्यवाणी के मुकम्मल आधार नहीं है |1977 के चुनाव में बुरी तरह हारे कांग्रेस 1980 में चौंकाने वाली सीटें लेकर आई थी |भारतीय राजनीतिक संक्रिया को देखते हुए ‘कांग्रेस मुक्त भारत ‘संघ परिवार का बेहद जल्दबाजी भरा नारा लगता है | ध्यान दिए जाने की जरूरत है कि जिन राज्यों में यह चुनाव हुए हैं वहां पर भाजपा व कांग्रेस के अलावा तीसरी शक्तियां मौजूद हैं |जहां – जहां भाजपा और कांग्रेस आमने सामने नहीं है वहां तीसरी शक्तियों के चलते भाजपा को लाभ मिलता है और कांग्रेस का जनाधार बंट जाया करता है |लेकिन जहां भाजपा और कांग्रेस आमने सामने होती हैं वहां कांग्रेस एक निर्णायक शक्ति के रूप में होती है |वो या तो सत्ता में होती है या उसे प्रभावित करने की शक्ति के रूप में |इसकी वजह यह है कि अब भी दलितों ,अल्पसंखयकों और पिछड़ी जातियों का एक बड़ा तबका कांग्रेस के साथ है |अभी ८- १० राज्य ऐसे हैं जहां भाजपा -कांग्रेस आमने सामने है |इसलिए कांग्रेस मुक्त भारत एक अभी तक एक हवाई नारा ही समझा जाना चाहिए |
असम में भाजपा की जीत चुनावी परिणामों पर हावी रही है | तमाम लेखों में यह बताया गया है कि असम के नतीजों का असर यूपी में पड़ने वाला है और भाजपा इस बात को भुनाने वाली है कि उसने एक बहुतायक अल्पसंख्य्क आबादी वाले राज्य में बहुमत हासिल किया है |कांग्रेस असम में जिस तरह हारी है इसमें भाजपा कि राजनीतिक कोशिशें कम कांग्रेस की रणनीतिक खामियां ज्यादा हैं |2014 में असम में कांग्रेस के 52 विधायक तरुण गोगाई के खिलाफ जाते हुए हेमंत बिस्व शर्मा को राज्य का मुख्य्मंत्री बनाने के नाम पर एकमत हो गए थे |लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ने तरुण गोगोई पर भरोसा किया और विधायकों के विशवास पात्र हेमंत बिश्व शर्मा भाजपा में चले गए |इसी तरह एक मौका कांग्रेस को तब मिला जब नितीश कुमार ने अगप के प्रफुल्ल महंत और एआईयूडीऍफ़ के बदरुद्दीन अजमल को मिलाकर बिहार कि तर्ज पर एक महागठबंधन बनाने कि बात कही |तब भी कांग्रेस ने गोगोई पर ही भरोसा किया जिसके चलते बदरुद्दीन से गठबंधन न हो सका और मुस्लिम वोट बिखर गया |
कांग्रेस में हर चुनावी हार के बाद एक मंथन चालू होता है पर उसका निष्कर्ष कोई सीख देता नहीं दीखता |दिग्विजय सिंह और शशि थरूर की सुधारात्मक आवाजों को दरकिनार करने की बजाय ध्यान दिया जाना चाहिए | धूल खाती एंटनी कमेटी की रिपोर्ट की सिफारिशों पर विचार किया जा सकता है |नए राजनीतिक नेतृत्व को खड़ा करने की कोशिश करनी होगी | संगठन को मजबूत करते हुए संघ की तरह सेवा दल को जमीनी कामों में तरजीह देनी होगी |ये सच है कि राजनीति में हार और जीत बेशक एक चुनावी चक्र है लेकिन तमाम हारे पार्टी के कार्यकर्ता के विशवास को इस कदर तोड़ देती हैं कि उसका धीमे- धीमे दल के सिद्धांतों से यकीन उठने लगता है |
इस वक्त हिमाचल प्रदेश ,उत्तराखंड और कर्नाटक सहित 6 सूबों में कांग्रेस की सरकारें हैं |अगले साल पंजाब और यूपी में विधान सभा चुनाव हैं |गौरतलब है कि 1989 के बाद से कांग्रेस ने यूपी में सत्ता का मुंह नहीं देखा है | यह एक मुश्किल चुनाव भी है क्युकी असम चुनाव के बाद बीजेपी राजनीतिक आत्मविश्वास से भरी है |प्रशांत किशोर के राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को यूपी राजनीति में सक्रिय होने के सुझाव पर गौर किया जा सकता है | कांग्रेस राहुल गांधी को अब राजनीति पूरी तरह आजमा सकती है |याद होना चाहिए कि यूपी चुनाव में 21 सीटें राहुल गांधी के नेतृत्व में ही आई थी |यह कांग्रेस के लिए नए राजनीतिक प्रयोगों का सबसे शानदार वक्त है क्युकी उसके पास राजनीतिक नुक्सान उठाने जैसी अब ज्यादा स्थितियां नहीं हैं |
आशुतोष तिवारी
भारतीय जन संचार संस्थान

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